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JDU में टूट, हार या अपमान का दंश; 17 महीने में नीतीश के दूसरी बार पलटी मारने की पांच बड़ी मजबूरी क्या?..

Last updated: 2024/01/27 at 11:57 AM
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6 Min Read
JDU में टूट, हार या अपमान का दंश; 17 महीने में नीतीश के दूसरी बार पलटी मारने की पांच बड़ी मजबूरी क्या?..
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बिहार में इन दिनों दो पछुआ हवाओं का जोर है। कुदरती पछुआ हवाओं ने जहां लोगों को ठिठुरने पर मजबूर कर रखा है, वहीं दूसरी सियासी पछुआ (दिल्ली से पहुंची सियासी खबर) हवाओं ने राजधानी पटना समेत राज्यभर में राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है।

पटना से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर चल रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी भी पलटी मारने का ऐलान कर सकते हैं। इससे तीनों खेमों (राजद-जेडीयू-बीजेपी) में बेचैनी, अटकलों और अफवाहों का बाजार गर्म है।

नीतीश अगर राजद-कांग्रेस और वाम दलों का साथ छोड़कर फिर से बीजेपी संग सरकार बनाते हैं तो 17 महीने के अंदर उनका यह दूसरा यू-टर्न होगा।

इससे पहले अगस्त 2022 में उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़कर पुराने समाजवादी साथी और कथित बड़े भाई लालू यादव संग मिलकर सरकार बनाई थी।

उस गठबंधन सरकार में जेडीयू-राजद के अलावा कांग्रेस और वाम दल भी साथ थे। उसे महागठबंधन नाम दिया गया था। तब नीतीश ने आरोप लगाया था कि बीजेपी उनकी पार्टी को तोड़ना और खत्म करना चाह रही थी।

जनवरी 2014 तक आते-आते नीतीश एक बार फिर से उसी मोड़ पर पहुंच गए हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नीतीश की क्या मजबूरियां रहीं कि वो 17 महीने में ही यू-टर्न लेने को विवश दिख रहे हैं?

BJP के संपर्क में थे सात सांसद
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि जेडीयू के सात सीटिंग सांसद बीजेपी के संपर्क में थे। फिलहाल लोकसभा में जेडीयू के 16 सांसद हैं।

इनमें से सात वैसे सांसद थे जिनकी जीत एनडीए की सामाजिक समीकरण से हुई थी लेकिन इंडिया अलायंस के तहत बने समीकरण में उनके जीतने की संभावना क्षीण हो रही थी। इसलिए ये  सात सांसद जेडीयू छोड़कर बीजेपी का दामन थामने की तैयारी कर रहे थे।

ललन सिंह को छोड़कर बाकी बीजेपी के समर्थक
जेडीयू के 16 सांसदों में अधिकांश फिर से बीजेपी के साथ जाने के पक्षधर थे। इनमें से सिर्फ ललन सिंह ही बीजेपी संग दोस्ती का विरोध कर रहे थे। नीतीश को संभवत: यह अहसास हो चुका था कि अगर वो राजद के साथ बने रहते हैं तो उनकी पार्टी टूट सकती है।

इसी टूट की आशंका के चलते उन्होंने दिसंबर के अंतिम दिनों में ललन सिंह को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाकर खुद पार्टी की कमान संभाली थी। उस वक्त भी अटकलें लगाई गई थीं कि ललन सिंह लालू परिवार के नजदीक हो रहे हैं और वह राजद के पक्ष में कुछ विधायकों को तोड़ सकते हैं।

इंडिया अलायंस में उपेक्षा
पिछले साल नीतीश की कोशिशों के बाद 28 विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया अलायंस अस्तित्व में आया था।

नीतीश को उम्मीद थी कि उस महागठबंधन में उन्हें या तो अध्यक्ष बनाया जाएगा या फिर संयोजक बनाया जाएगा लेकिन जब उनके नाम पर ममता बनर्जी ने अड़ंगा लगाया और पिछले दिनों वर्चुअल मीटिंग में जब राहुल ने संयोजक बनाने के सीताराम येचुरी के प्रस्ताव पर ममता बनर्जी से क्लियरेंस लेने की बात कही तो नीतीश को यह बात चुभ गई।

उन्होंने इसे ना सिर्फ अपनी उपेक्षा बल्कि अपमान के तौर पर लिया। इसके बाद से ही उन्होंने तेजी से अपने सूत्रों को बीजेपी से डील करने की छूट दी। 

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद की परिस्थितियां
अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण और राम लला की भव्य प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में बहती हिन्दुत्व की लहर को नीतीश कुमार ने भांप लिया। उन्हें अहसास हुआ कि इंडिया अलायंस की वजह से बने सामाजिक समीकरण में जीत की गारंटी नहीं है।

इसके अलावा कांग्रेस उनका अपमान कर रही है, राजद के साथ सीट बंटवारों पर दिक्कत आ रही है और उनके सांसदों के टूटने का भी खतरा है, इसलिए मोदी की लोकप्रियता और उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से मिलने वाले लाभ और जीत के फॉर्मूले का हिस्सा बनकर सत्ता बरकरार रखी जाय।

कांग्रेस पर उंगली
बड़ी बात यह है कि 2017 में जब नीतीश कुमार ने पहली बार राजद के साथ गठबंधन तोड़कर बीजेपी संग मिलकर सरकार बनाई थी, तब राजद को दोषी ठहराया था लेकिन इस बार नीतीश कांग्रेस के सिर इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं। राहुल ना सिर्फ संयोजक के मुद्दे पर नीतीश की आंखों की किरकिरी बने बल्कि इंडिया अलायंस में सीट बंटवारे को छोड़कर वह भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर चले गए।

दूसरी तरफ, नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर जयंती के बहाने राजद में परिवारवाद पर भी निशाना साधा है।

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संपादक - Rohan Singh Parihar
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