असम में रहने वाले 61 वर्षीय आदिवासी किसान सरबेश्वर बासुमतारी का एक दिहाड़ी मजदूर से पद्मश्री जीतने तक का सफर मुश्किलों और बेहद उतार-चढ़ाव वाला रहा।
पद्मश्री देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, जिसके लिए बासुमतारी को नामित किया गया है।
चिरांग जिले के दूर-दराज में स्थित पनबारी गांव में रहने वाले बासुमतारी मिश्रित एकीकृत खेती में सभी के लिए एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में उभरे हैं।
एकीकृत खेती का मतलब एक ही खेत में सभी प्रकार की खेती से है, जिसमें फलों व सब्जियों की खेती, मुर्गीपालन और दूसरी चीजों की खेती की जाती है। बोडो समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बासुमतारी को चिरांग का कृषि चिराग नाम से भी जाना जाता है।
बासुमतारी ने बताया कि गरीबी रेखा से नीचे के एक परिवार का सदस्य होने के नाते मैंने केवल प्राथमिक स्तर तक ही पढ़ाई की और उच्च शिक्षा की कमी की वजह से कृषि क्षेत्र में मुझे अपने अपने सफर के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा,उस दौरान मुझे बोडोलैंड क्षेत्र में उग्रवाद की समस्याओं के साथ-साथ भारी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।
बासुमतारी ने कहा, जिन बाधाओं को मुझे पार करना था उसमें कृषि में निवेश के लिए पर्याप्त धन की कमी, उचित सुविधाओं की कमी और वैज्ञानिक तरीकों के ज्ञान की कमी शामिल थी क्योंकि चिरांग एक पिछड़ा क्षेत्र था।
इच्छाशक्ति, ध्यान केंद्रित करने और कड़ी मेहनत से उन्होंने इन चुनौतियों पर काबू पा लिया। पद्मश्री के लिए नामित किसान ने कहा कि जिला और राज्य स्तर पर अधिकारियों के निरंतर समर्थन और सहयोग से उन्हें अपने कृषि कार्य में मदद मिली।
उन्होंने कहा, वर्ष 1995 से मैंने बेरोजगार युवाओं को कृषि में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने उनकी रुचि बढ़ाने के लिए उदाहरण पेश करने की कोशिश की।
बासुमतारी ने कहा, यह पुरस्कार जीतना मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है। यह अभी भी मेरे लिए एक सपना है। अब मेरी इच्छा युवा पीढ़ी को कृषि, नर्सरी या बागवानी क्षेत्र से जुड़ने के लिए प्रेरित करने की है।
बासुमतारी ने कहा कि अगर लोग मन लगाकर और दृढ़ संकल्प के साथ किसी काम पर लगे रहें तो सफलता जरूर मिलेगी।
बासुमतारी को वर्ष 2022-23 के लिए असम सरकार के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार असम गौरव से भी सम्मानित किया गया था।