कोरोना महामारी के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का काफी इस्तेमाल हुआ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे लेकर अब एक रिपोर्ट तैयार की है। इसके मुताबिक, इन दवाओं का अत्यधिक यूज होने से एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का स्तर तेजी से बढ़ गया।
इसका मतलब यह है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोधक क्षमता पर असर पड़ा। रिपोर्ट में पाया गया कि हॉस्पिटल में भर्ती कोविड-19 से पीड़ित केवल 8 प्रतिशत लोगों में बैक्टीरियल को-इंफेक्शन था।
ऐसे मामलों में इसकी आवश्यकता थी, मगर तीन-चौथाई रोगियों को एंटीबायोटिक्स दिए गए। सबसे अधिक एंटीबायोटिक का इस्तेमाल गंभीर रोगियों में देखा गया, जिसका वैश्विक औसत 81 प्रतिशत है।
रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी भूमध्यसागरीय और अफ्रीकी देशों में एंटीबयोटिक दवाओं का सबसे अधिक 83 प्रतिशत इस्तेमाल हुआ। ये नतीजे 3 साल की अवधि के लिए 65 देशों के क्लिनिकल डेटा के आधार पर निकाले गए।
इसके अनुसार, सबसे बड़ी चिंता यह रही कि वॉच एंटीबायोटिक्स का विश्व स्तर पर सबसे अधिक बार इस्तेमाल देखा गया। इनमें उच्च प्रतिरोध क्षमता होती है।
विषाणु, जीवाणु, फफूंदी और अन्य परजीवों में समय बीतने के साथ कुछ बदलाव होते हैं। इसके कारण रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित हो जाता है।
इस स्थिति में एंटीबायोटिक और अन्य जीवनरक्षक दवाएं अनेक प्रकार के संक्रमणों पर असर नहीं कर पातीं।
कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य संगठन ने दिए थे सुझाव
यूएन एजेंसी की प्रवक्ता डॉक्टर मार्गरेट हैरिस ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य संगठन की ओर से कुछ सुझाव दिए गए थे।
किसी भी समय कोविड-19 के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवा का इस्तेमाल करने की सिफारिश नहीं की गई। उन्होंने कहा, ‘एकदम साफ शब्दों में बताया गया कि यह एक वायरस है।
इसलिए ऐसा नहीं था कि किसी तरह के दिशानिर्देश हो कि स्वास्थ्यकर्मियों को इस दिशा में जाना है। मगर, लोग एक नई चीज का सामना कर रहे थे। वे
किसी भी तरह इसका खोज रहे थे। ऐसे स्थिति में कई सारे कदम उठाए गए।’ आंकड़ों के अनुसार, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में कोविड-19 संक्रमितों के इजाल में 33 फीसदी को एंटीबायोटिक दवाएं दी गईं।
पूर्वी भूमध्यसागर व अफ्रीकी क्षेत्र में यह संख्या 83 प्रतिशत थी।